रेतीले टीले

रेतीले टीले

रेतीले टीले
उपेक्षा, अवज्ञा, अस्वीकृति से
क्या डरना
एक अनजान भय कि
छतरी को खोल कर क्यों चलना
जीवन के मोड़
सड़कों की तरह स्पष्ट नहीं होते
कोई सूचना पट भी नहीं लगा होता
कि आगे तीव्र मोड़ है
रफ्तार धीरे कर लें

बस हमें तो चलना होता है
संभलना होता है और
सटीक अनुमान के साथ
मुड़ना होता है
अपेक्षा से उपेक्षा
आज्ञा से अवज्ञा
स्वीकृति से अस्वीकृति
जीवन के रंगमंच पर
खेले जाने वाले नाटक की तरह होते हैं
हर पल रंग और रोशनी बदल लेते हैं

मुक्ति, भुक्ति, अनुरक्ति, अनासक्ति
सुनने में अच्छे लगते हैं
पर इन शब्दों को
परिभाषित करना
इतना सरल नहीं है

जीवन बहुत ठोस होता है
इतना तरल नहीं है
अंत में तो केवल
ठहरना होता है
रुकना होता है
समझना होता है
परंतु निष्कर्ष की उम्मीद
हमें हमारी राह से भटका देती है
पर्वत नहीं रेतीले टीले को ही
लक्ष्य बता देती है

और क्या कहूँ एक क्षण में
मैं भी छली गई हूँ जीवन में
कई बार रंग चढ़कर उतर गया
अर्थ जीवन का बदल गया
लेकिन जीवन चलता राह
उपेक्षा, अवज्ञा, अस्वीकृति से
लड़ता रहा, जलता रहा, चलता रहा।


Image : Desert
Image Source : WikiArt
Artist : Konstantin Makovsky
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