बिछुड़न
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-about-separation-bichhudan-by-bhawna-shekhar-nayi-dhara/
बिछुड़न
अपनेपन का माँझा
थोड़ा-थोड़ा लपेटा था
रोज जिंदगी की
चरखी घूमा-घूमा कर।
यहाँ वहाँ इकसार कसा हुआ
आज भी कटी हुई पोरों पर
बाकी हैं निशान,
सोचा था,
मेरी भी पतंग उड़ेगी एक दिन
छुएगी आसमान
बादलों के पार
लालसा के चटख रंग की।
सूरज के पैर में चिकोटी काट कर
लौट आएगी मेरी बाँहों में
डोर के सहारे।
मगर यह हो न सका,
मेले में बिछड़े बच्चे सी
खो गई पतंग…
कट कर गिरी किसी नदी नाले में
या पेड़ की डाल में
उलझ कर फट गई,
नहीं जान पाई,
नहीं जान पाते हम
कब कोई मजबूत माँझा
हमारी डोर को काट डाले!
Image : Two Peasant Boy with a kite
Image Source : WikiArt
Artist : Alexey Venetsiasov
Image in Public Domain