कंकाल और चाँद

कंकाल और चाँद

दरख्तों का कंकाल है फैला
मेरे भीतर,
जिसकी उजड़ी शाखों में लटका है–
पूरनमासी का तन्हा चाँद!

डरावनी अँधियारी में,
यह सुंदर चाँद
कहाँ से उतरा
मेरे भीतर के आकाश में!
डरावना कंकाल और सुंदर चाँद
चलते हैं दोनों साथ-साथ
जीवन में क्या!

यह अजूबा है जिंदगी का
जिसे समझ पाया हूँ शायद
एक लंबी यात्रा के बाद।

Image : Lake with Dead Trees (Catskill)
Image Source : WikiArt
Artist : Thomas Cole
Image in Public Domain


शोभनाथ यादव द्वारा भी