केंकड़े के प्रति

केंकड़े के प्रति

डूबता हुआ चाँद,
ठीक मरते हुए मानुष-मन जैसा
वैसा ही सिकुड़ा-सा पंख
फड़फड़ाता-उड़ता पेड़ों के बीच आता,
और अंततः
आते वसंत की उस पहाड़ी पर
नन्हीं घास की जड़ों में समा जाता
ओ री नीरवता, वह क्या है
उसके अंदर गहरी साँसें लेने वाली
मैं साफ सुनता हूँ अपनी देह में
दिल की धड़कनों की आवाज
मानों दूर के किसी प्रदेश से आ रहे
मेरे दोस्त के घोड़े की टाप धमकती हो।

रात के इस पहर में, वहाँ रहते हुए,
जहाँ डूब रहा हो चाँद,
तुम अब क्या सोच रहे मेरे दोस्त?
उतने ऊँचे उन प्राचीन पीली पड़ी
किताबों के इस ढेर पर
चमकती उस रोशनी को बुझाओ मत,
भले डूब रहा हो चाँद,
खैर, मैं सपने में तुम्हें मिलूँगा!


Image: Young Man Reading by Candle Light
Image Source: WikiArt
Artist : Matthias Stom
Image in Public Domain