तो भी शुक्रिया

तो भी शुक्रिया

शुक्रिया पहाड़!
तुम हो तो कितने सुरक्षित हैं हम
एक प्राकृतिक किला हो हमारा
हमारे पूर्वजों के पुण्यों का फल।

शुक्रिया सागर!
तुम कवच हो हमारा।
कितना निश्चिंत रखती है हमें
एक-एक लहर तुम्हारी।

पर सोचता हूँ
आखिर किससे भयभीत हैं हम
किससे चाहते हैं हम सुरक्षा
क्यों चाहते हैं हम कवच।

सोचता हूँ
वह कौन-सा पाप था पूर्वजों का
जिसका फल है यह भय।
सोचता हूँ
पूर्वज हमारे हों या किसी और के
नहीं थे क्या वे पूर्वज मानवता के?

सोचता यह भी हूँ
भयभीत हम ही क्यों
तुम क्यों नहीं पहाड़?
तुम क्यों नहीं सागर?
तुम क्यों नहीं गिड़गिड़ाते
क्यों नहीं माँगते सुरक्षा?

तो भी शुक्रिया पहाड़!
शुक्रिया सागर!


Image : Lake in the Swiss mountains
Image Source : WikiArt
Artist : Aleksey Savrasov
Image in Public Domain

दिविक रमेश द्वारा भी