ऐसे दिन थे

ऐसे दिन थे

ऐसे दिन थे
बहुत चिरैया
घर आती थीं गाने
कुछ ताने दादी देती थीं
कुछ अम्माँ के ताने।
फिर भी निसि-दिन डाले जाते थे
आँगन में दाने।

कर्ज़े लदे हज़ार खेत पर
घर-आँगन था कर्ज़ा
उस कर्ज़े वाली बखरी में
चिड़ियों का था दर्जा
जिस दिन दाने सपना हो गए
अम्माँ चली भुनाने…
पूजे कितने देव निकलकर
घर से दादी-माँ ने
उन वर्षों में भी
चिड़ियों ने घर में गाये गाने।
कर्ज़ चुकाने
सुनने गाने
हम तो चले बाज़ार
मिली अफसरी हुई खरीदी
कोठी ली दो-चार।
हम क्या जानें
इस दुनिया में
महँगाई की मार।

घिरे सुनामी से घर-कोठी
चिड़िया हो गई सपना…
अब न रहा वह कर्ज़ निगोड़ा
वह घर-आँगन अपना।
फटे पुराने और अजाने
जूतों का शृंगार।
जिसे कीन लाये थे दादा
दे तुलसी का हार
वह सिंगार अब कहाँ मिलेगा
दे अफसरी हजार।

लौट सकें तो
लौटें, भाई
हम उस अमराई में
छोड़ सुनामी की शीतलता
घर की पुरवाई में…
लौट चलो, ओ बंधु
नहायी-फागुन-भौजाई में

भौजाई ने मुझे अगोरा
वर्षो भेजी पाती
वर्षो खड़ी रही देहरी पर
रखकर दीया-बाती।
मैं भी बहुत…
बहुत लौटा उस
बेबस हरजाई में।
रातें मुझे ले गईं मीलों
सरसों पियरायी में
मैं अब तक हूँ वहाँ खड़ा
उस माटी गभिनायी में!


Image : Canary and Peony
Image Source : WikiArt
Artist : Katsushika Hokusai
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