तुम्हारे आतंक से

तुम्हारे आतंक से

मैं नहीं जानता ईश्वर
तुम कहाँ हो
कहीं हो भी या नहीं
यह भी नहीं जानता

वैसे भी तुम्हारे होने न होने के
पचड़े में पड़ना नहीं चाहता मैं
कहीं हो तो भी ठीक
नहीं हो तो भी

मेरी समझ से
मेरा तुम्हारा रिश्ता
सड़क पर चल रहे दो अनजान
आदमी की तरह है
जिसे अगले चौराहे पर जाकर
मुड़ जाना है
अलग-अलग दिशाओं में
अपने-अपने काम पर जाने के लिए

तुमसे कोई शिकायत नहीं है मुझे
न ही डर है तुम्हारा
पता है मुझे
तुम्हारे होने से नहीं हमारा अस्तित्व
सच तो यह है
आदमी है तो जिंदा हो तुम

औरों की तरह मैं तुमसे
कुछ माँगता-छाँगता नहीं ईश्वर
न ही तुम्हारी गली से गुजरते
डर से सिर झुकाने की
आदत है अपनी

डरता हूँ तो
तुम्हारे नाम का आतंक फैलाने वाले
धर्माधिकारियों से
गर्भ में पल रहे शिशु तक का
रक्त-तिलक लगा
जय-जयकार करते जो
लेते हैं तुम्हारा नाम

वे कहते हैं
सब कुछ तुम्हारी मर्जी से होता है
एक पत्ता तक नहीं हिलता
तुम्हारे आदेश के बिना

अगर यह सच है
तो जाहिर है ये दंगा फसाद
सब कुछ तुम्हारा ही किया कराया है
अब ऐसे में तुम्हीं बताओ ईश्वर
तुम्हारे प्रति मेरी यह धरणा
कहाँ तक गलत है कि आज
सबसे बड़ा आतंकवादी तुम्हीं हो!

सच कहूँ तो उकता गया हूँ
बचपन से ही तुम्हारे बारे में सुन-सुनकर
भर गया हूँ गहरे आतंक से
अब मुक्त होना चाहता हूँ
तुम्हारे आतंक से ईश्वर
मुक्त होना चाहता हूँ तुम्हारे आतंक से!


Image: Daniell Temple near Benares
Image Source: Wikimedia Commons
Image in Public Domain


अशोक सिंह द्वारा भी