वैसा ही संगीत
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-about-vaisa-hi-sangeet-by-rojalin/
- 1 October, 2016
वैसा ही संगीत
जब वृक्षों पर
नवांकुर फूटते थे
तब भी एक राग
बहा करता था हवा मे,
जब वृक्षों की छाया
सुहाने लगी देह पर
तब भी,
आकाश में उड़ते बादल
घटाएँ उठाने लगे,
जब ठिठुरती हवाओं से
कुम्हलाने लगी दूब
और झरने लगे
फूल-पात
तब भी और आज!
पतझर के उदास मौसम में
कच्ची राहों पर झुके
दरखतों से टूट-टूट कर गिरते
सूखे पत्तों की
चरचराहट में भी
–विलगाव के गहरे
विषाद, उदासी,
पीड़ा का
वैसा ही संगीत
जान पड़ता है।
Image : Coesweerd In Laren In The Autumn
Image Source : WikiArt
Artist : Cornelis Vreedenburgh
Image in Public Domain