रास्ता

रास्ता

पहली बार
उस रास्ते से गुजर रहा था
तीन किलोमीटर की दूरी
तीन सौ किलोमीटर लग रही थी
लग रहा था कि जैसे
खाइयों-खंदकों में गिरा जा रहा हूँ,
पहाड़ों की चढ़ाई कर रहा हूँ
पहाड़ों की चढ़ाई करते-करते
वहाँ से फिसल रहा हूँ
झाड़-झंखार और जंगल
रास्ता रोक रहे हैं
धूल भरी आँधियों के बवंडर में
मैं खोता जा रहा हूँ।
पैर अशक्त हो चुके हैं
आँखें निस्तेज
और कंठ सूख गया है।
दूरियाँ पाटे नहीं पट रही थीं।
उसी रास्ते जब लौटना हुआ
दुबारा-तिबारा फिर जाना हुआ
दूरियाँ तीन सौ किलोमीटर की
दो-एक किलोमीटर में सिमटने लगीं।
रास्ता बनाने की यही कहानी है
पहले वह थकाती है, रुलाती है
फिर हँसाती है।


Image : Le Bois des Roches Veneux Nadon
Image Source : WikiArt
Artist : Alfred Sisley
Image in Public Domain

पंकज चौधरी द्वारा भी