जो मैंने नहीं चाहा

जो मैंने नहीं चाहा

मुझे आज तक नहीं आया
भिड़ाना तुकें।

मसला जीवन का हो या मृत्यु का
मुझे आज तक नहीं आया
कुछ ऐसा करना
जो मैंने कभी नहीं चाहा।

मसलन
लगाकर मरहम
मुझे आज तक नहीं आया
रुकना
और सुनना
गौरव गान या कुछ ऐसा ही।

अगर लगता है
कि मुझे नहीं लेना-देना
किसी के दुःख से, या सुख से
तो बस इतना भर लगता हूँ सोचने
कि क्यों उठते हैं हर बार ये कदम
उसी की ओर
जिसे जरूरत है मरहम की
और क्यों तनती हैं मुट्ठियाँ
उसी की ओर
जो पैदा करता है जरूरत
मरहम की।


Image : Diogenes with his Lantern, in search of an Honest Man
Image Source : WikiArt
Artist : Mattia Preti
Image in Public Domain

दिविक रमेश द्वारा भी