बुद्धत्व

बुद्धत्व

अपने एकांत को
उत्सव बना लेना
क्या यही बुद्धत्व नहीं मैं?

अपनी आकुलता को
परम संतोष बना लेना
क्या यही बुद्धत्व नहीं?

मिलन बिछोह से परे
एकात्म हो लेना
क्या यही बुद्धत्व नहीं?

दुःख तुम्हें सिर्फ
दिगंबर करता है
तुम क्यों डरते हो…
अपनी इस अलौकिक नग्नता से,

क्या तुम्हारी पीड़ाएँ
वैदिक ऋचाओं सी
उच्चरित नहीं होतीं?
फिर क्यों क्लांत हो?

जलकर राख हुए स्वप्न
क्या भभूत सी शांति नहीं देते?

संबंध मात्र अरण्य है
और एकांत अंतिम पाथेय
जो तुम्हें बुद्धत्व देता है।
दरअसल आसक्ति का परम ही
हमें अनासक्त करता है।

तृप्ति-अतृप्ति, मोह-विराग
घृणा-प्रेम, सुख-दुख के मध्य
निर्विकार हो लेना हीं बुद्धत्व है।


Image:The Victory of Buddha
Source: Wikimedia Commons
Artist: Abanindranath Tagore
Image in Public Domain