गुज़ारी अपनी ही मर्जी से जिंदगी तुमने

गुज़ारी अपनी ही मर्जी से जिंदगी तुमने

गुज़ारी अपनी ही मर्जी से जिंदगी तुमने
कभी किसी की ज़रा-सी भी क्या सुनी तुमने

ज़रा-सा हँस के कभी बोल क्या दिया उससे
कि शक के घेरे में रख दी वफा मेरी तुमने

ज़रा-सी ढील क्या दे दी पतंग को उसने
बड़े सलीके से आकर के काट दी तुमने

तुम्हारा दिल तुम्हारी रूह चाहती क्या है
अपने भीतर का कभी शोर सुना भी तुमने

भले शरीर तुम्हारा यहाँ रहे न रहे
अमर रहेगी, की जो भी भलाई तुमने

झुकाती शीश हूँ अपना महानता को तेरी
हमारे पापों को धोया है ए नदी तुमने

हमारे दिल में तुम खुदा से कम तो नहीं
अँधेरे वक्त में दी है जो रौशनी तुमने

बहाना ढूँढ़ते रहते हो क्यों लड़ाई का
कहाँ की बात कहाँ ला के जोड़ दी तुमने


Image : Portrait de Madame Claus
Image Source : WikiArt
Artist : Emile Claus
Image in Public Domain

ममता किरण द्वारा भी