चाँदनी चौक

चाँदनी चौक

वहाँ गाँव में
बाग-बगीचे
घर-बखरी में गइया थीं
बोली ऐसी
किसी फिल्म की
नूर-ए-जहाँ, सुरइया थीं।

नीम-नीबौड़ी में
हँसता मैं
कोई मुझे बुला लाया
कटा टिकट
सरकारी बस का
बस में मुझे चढ़ा आया।
अब जब
लौटा गाँव
द्वार पर कोई नीम-न-गइया है
एक बाबा ने कहा
पिशाचिन
रोती यहाँ सुरइया है।

अबकी
टिकट कटाकर मैं
खुद से दिल्ली में आया हूँ
गँठरी में मैं बाँध खेत-खलिहान
उठाकर लाया हूँ।
लोग बताते हैं
अब मेरा प्रेत
गाँव में बसता है
किसी आम-बरगद के नीचे
खड़ा अकेला हँसता है।
मैं चाँदनी चौक में
अपना गाँव
खोज बौराया हूँ।


Image: Old Delhi in 1954
Image Source: Wikimedia Commons
Artist: Rodney Stich
Image in Public Domain

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