चित्रशाला
- 1 December, 2023
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-chitrashala-by-anand-shankar-madhvan-nayi-dhara/
- 1 December, 2023
चित्रशाला
उस चित्रशाला में
अनगिन तस्वीरें हैं सुरक्षित
अनगिनत प्रतिनिमिष
बनाई और मिटायी जा रही
पर दर्शक नहीं एक भी।
पानी बह चुके गंगा के कितने
बहने को बाकी हैं कितने
दृश्य अनगिनत
उपस्थित करते हुए
फिर उन्हें गायब करते हुए
सूरज कितनी ही बार उग चुका
और कितनी ही बार उगेगा भी
हर बार कोटि-कोटि दृश्य
उपस्थित करता
फिर उसे गायब करता।
पर गंगा स्थायी है दिखाई दे रही
सूरज स्थायी है दिखाई दे रहा
नभोमंडल और पृथ्वी भी स्थायी है
दिखाई दे रही
निःसंदेह प्रत्येक चित्र से
ऊपज रहे हैं कोटि-कोटि चित्र
और प्रत्येक बीज पर लगे हैं
कोटि-कोटि बीज।
Image : Umbrellas
Image Source : WikiArt
Artist : Pierre Auguste Renoir
Image in Public Domain