कुछ कोशिश तो हो

कुछ कोशिश तो हो

सब बदलेगा नहीं अचानक
कुछ कोशिश तो हो

जान रही हूँ
एक दिवस में
नहीं हरा होगा यह बंजर
लेकिन इक-इक
कर ये बिरवे
कुछ तो पाटेंगे कल अंतर

बूँद-बूँद से घट भरने तक
कुछ कोशिश तो हो

होंगी कुछ
बेकार कोशिशें
मगर नहीं हम घबराएँगे
खोजेंगे हम
नये रास्ते
सृजन गीत निश्चित गाएँगे

नहीं झुकाएँगे हम मस्तक
कुछ कोशिश तो हो

हाँ वह कोशिश
जिस कोशिश में
वर्षों बाद निखरता ‘दशरथ’
हाँ जी, जिसने
चीर पहाड़ों
को भी कर डाला समतल पथ

देनी होगी पहली दस्तक
कुछ कोशिश तो हो।


गरिमा सक्सेना द्वारा भी