तेज़तर होती लौ

तेज़तर होती लौ

कवि ऐसा दर्ज़ी है
जो अक्सर ग़लत नाप के कपड़े
सिलकर खुश होता है
जिसे पहनने के लिए
बार-बार ठीक करनी होती है

अपनी कदकाठी!

एक जुलाहा है
जो कातता है जितने धागे
उससे अधिक उधेड़ता है सीवन

इक कसाब
जिसकी छुरी की तेज़ धार
बिना बटखरे के भी काटती है
नपातुला माँस

एक दीप

जो बुझने के अरसे बाद
होता है प्रज्ज्वलित
सदियों बाद तेज़तर होती
जाती है उसकी लौ!!


Image : The Village Tailor
Image Source : WikiArt
Artist : Albrecht Anker
Image in Public Domain

अभिज्ञात द्वारा भी