किनारा वह हमसे

किनारा वह हमसे

किनारा वह हमसे किए जा रहे हैं
दिखाने को दर्शन दिए जा रहे हैं

जुड़े थे सुहागिन के मोती के दाने
वही सूत तोड़े लिए जा रहे हैं

छिपी चोट की बात पूछी तो बोले
निराशा के डोरे सिए जा रहे हैं

जमाने की रफ्तार में कैसे तूफाँ
मरे जा रहे हैं, जिए जा रहे हैं

खुला भेद, विजयी कहाये हुए जो
लहू दूसरे का पिए जा रहे हैं।


Image : In the Boat
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Artist : Konstantin Korovin
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