कविता

कविता

कविता सीधे रास्ते नहीं चलती….
कविता राजमार्गों को छोड़, राहमापी
करती है गलियों, पगडंडियों
धूलभरी बस्तियों की।
कविता पसीने की गंध में मिलाती है
गर्म रोटी की महक।
कविता चूल्हे पर उठती भाप से
मापती है भूख का तापमान।
कविता घृणा की परतों को उधेड़
प्रेम पर अपनी मुहर लगाती है
कविता पहचान करती है
झूठ की सच से।
कविता प्रिया के नकबेसर से
हक में उठे हाथों तक
प्रेम की सूक्ष्म तरंगों से
प्रतिरोध की बेचैनी तक
रचती है रचनात्मकता का वितान
जिसमें फूलों की खुशबू लिपटी
रहती है लहू की गर्माहट के साथ…
कविता नहीं उगती आँगन की क्यारियों में
कविता उगती है जंगली घासों के बीच
पत्थरों की दरारों के मध्य
अपने साथ अपनी मिट्टी और नमी लेकर
कविता अकुलाहट की छाती पर
पाँव धरकर खड़ी होती है और प्रतिरोध की
नदी में खेती है संघर्षों की नाव…
कविता आत्मा की जमीन को
कोड़ती, जोतती है
और बोती है उसमें मनुष्यता के बीज…
कविता रीढ़ की हड्डी को
खींच कर सीधा करने का काम करती है
ताकि आदमी बना रहे आदमी।


Image : Street in Cairo
Image Source : WikiArt
Artist : Konstantin Makovsky
Image in Public Domain

नीरज नीर द्वारा भी