बाती का जलना

बाती का जलना

तुम रुककर राय न दे डालो साथी
कुछ दूर अभी आगे तुमको चलना

तुम आज उमर के फूल चढ़ाते हो
तुम समझे हो, जिंदगी बढ़ाते हो
तुम पर जो ये धूलें चढ़ती जातीं
तुम समझे हो, लहरें बढ़ती आतीं
तुम समझे हो, मिल गई तुम्हें मंजिल
वह तो हर रोज यहाँ दिन का ढलना

पूनो के बाद अमावस आएगी
उजियाली पर अँधियारी छाएगी
फिर गुल की बुलबुल चुप हो जाएगी
इस बार खार की कोयल गाएगी
सुख दिन है, दुःख है रात घनी काली
है दर्द दिया में बाती का जलना

तुम क्षुब्ध रहे अंधड़-तूफानों से
तुम मुग्ध रहे बुलबुल के गानों से
तुम क्या जानो, यह दुनिया सोती है
उसकी समाधि पर बुलबुल रोती है
तुमने कुल छल देखे न छली देखा
तुम देख रहे केवल कलना-छलना

मिलने वाला ही मिला नहीं जग में
तुम खोज चले झिलमिल में, जगमग में
यह चंद्रकिरण घन-जालों में उलझी
इनकी उनकी किनकी किस्मत झुलसी
है क्या जिसको तुम उमर बताते हो
कुछ गई घड़ी, कुछ घड़ियों का टलना!


Image: Landscape with Couple Walking and Crescent Moon
Image Source: WikiArt
Artist: Vincent van Gogh
Image in Public Domain