भारत माता

भारत माता

कोरोना में लॉक डाउन
मेरा कैसा लॉक डाउन?
घर नहीं, आँगन नहीं
कहाँ ठहरूँ?
ताला लगा कर
कहाँ बैठूँ?
कहाँ निश्चितता से
बैठ कर काम करूँ?
मेरे तो
पेट में कुनमुना रही है
लाते मार रही हैं
नौ महीने की
अजन्मीं संतान।
ओह! प्रसव वेदना
अब कैसे सँभालूँ
अकेले जन्मती संतान को?
राह का दर्द
प्रसव के दर्द में घुल गया
दो टाँगों के बीच
कुछ अटकने लगा
समष्टि जन्मनें लगी
वह ठहरी दो पल
संतान को पकड़ा गोद में
नाल कौन काटे
कैसे काटूँ इस बंधन को?
चल पड़ी थी भारत माता
हाथ में पकड़े नाल
और संतान को।
उसकी टाँगें
खून से लथपथा गई थीं
कपड़े रंग गए थे
होली के रंग की तरह
खून मिश्रित हो गया था
जख्म और सृष्टि दोनों का
निर्माण की क्रिया में।
लोग देख रहे थे
मुझसे सहानुभूति थी
मगर–वे सब,
मेरी तरह विवश थे
कोरोना युग के साथी थे
उनके और मेरे सिर पर
सिर्फ आसमान था
पैरों के नीचे धरती थी
वह भी उनकी नहीं थी
पता नहीं कौन उनको
घुड़क दे
कौन वर्दीधारी मुर्गा बना दे
कौन उन्हें डंडा बजा दे
यह भी कोई जगह है
बच्चे पैदा करने की?


Image : Sorrow (II)
Image Source : WikiArt
Artist : Mikalojus Konstantinas Ciurlionis
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