चौंका हुआ रहता है मन

चौंका हुआ रहता है मन

अभी घर में
मैं हूँ और मेरी माँ है
लेकिन माँ चिंतित और उदास है
मेरे भाई को घर से निकले
दो घंटे हो चुके हैं
बहन बोल कर गई थी
अभी-अभी आ रही हूँ
लेकिन वह भी
अभी तक आयी नहीं है।

मैं माँ को सांत्वना दे रहा हूँ
लेकिन जानता हूँ
हादसे हर जगह
हमारा इंतजार कर रहे हैं
जीवन कभी भी
स्थायी चीज नहीं रहा
लेकिन आज हिलोर मारती लहरों पर
लड़खड़ाती किश्ती की तरह
वजूद बचाने की असंभावनाओं से
प्रतिक्षण घिर गया है।

इस क्षण मैं ऐसे विचारों से
बचना चाह रहा हूँ
फिर भी उलझता जा रहा हूँ
कि उपभोग के औजार
निरंतर बढ़ते और बड़े होते जा रहे हैं
लेकिन ये सब जिसके लिए
जिस जीवन के लिए हैं
उसकी मूर्त संभावनाओं को
दीमक चाट रही है।

यह क्या हो गया मुझे
अब मैं स्वयं से ही पूछ रहा हूँ–
वह कौन है जो अपनी छाया में
हमें हँसा और रुला रहा है?
आखिर वह कौन है
जो मानवीय प्रतिरोध को
विकलांग करता जा रहा है?

माँ की आँखें अब
मेरी तरफ से हटकर
दरवाजे पर टँग चुकी है
एक पुरातन गीत की धुन में
खुद को भुलाते हुए–
मोरे राम के भीजे मुकुटवा
लछिमन के पटुकवा
मोरी सीता के भीजे सेनुरवा…।

अभी मैं अचानक कुछ बोलूँ
तो माँ चौंक जाएगी
बंदी समय की गुलाम हवा में
साँसें इतनी सर्द हो चुकी हैं कि
चौंका रहता है मन हमेशा
माँ के साथ-साथ
घर में हर किसी का।


Image: Arrangement in Grey and Black No.1, Portrait of the Artist s Mother
Image Source: WikiArt
Artist: James McNeill Whistler
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