कोरोना में मौत

कोरोना में मौत

दूर क्षितिज तक सन्नाटा था
सिर्फ प्रकृति निहार रही थी
और वह प्रकृति को
निहार रहा था
फटी आँखों से
गगन में धूप फैली थी
चमकीली–
सिर पर रखे
घर-गृहस्थी का बोझा
एक पेड़ की छाँव
देख कर वह सुस्ताने को ठहरा
देख कर नजारा
होश उड़ गए थे उसके
कुछ कुत्ते–नोच रहे थे
मानव के क्षत-विक्षत
मृत शरीर को।
उसके मुँह से यकायक निकला–
ओह कोरोना!
तूने यह दिन भी
दिखा दिया
मानव की दुर्गति इस तरह?
वह ठहर नहीं सका
न सुसता पाया
दो पल पेड़ की छाँव में
उसका मन–
वितृष्णा से भर गया
थके भारी छाले भरे पाँव से
चल पड़ा था
सिर पर थैला रखे
वह मानव
वह महसूस रहा था ऐसे
जैसे–प्रलय के वक्त
हिमाद्रि तुंग शृंग से
बैठा सोच रहा था
वह मानव
जब ऊपर-नीचे
जल ही जल था
अब–
जल के दर्शन नहीं
दूर तक!
शरीर का जल भी
सूखने लगा था
गला भरभरा रहा था प्यास से।
भय ही भय था
दूर क्षितिज तक
अपने जैसे
मानव की दर्दनाक मौत-
दुर्गति देख कर,
मुँह में शब्द गूँज रहे थे
हे भगवान! हे अल्लाह!
हे वाहे गुरु! हे महामानव
तू जिस रूप में
जहाँ कहीं है तो
मानव को मौत मत देना
इस मानव की तरह
दुर्गति मत करना
इस मानव शरीर की।


Image : Sorrow (I)
Image Source : WikiArt
Artist : Mikalojus Konstantinas Ciurlionis
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