गहरी नींद में सो सकूँ

गहरी नींद में सो सकूँ

यही तो है जीवन उसका
वह फटे-पुराने वस्त्र पहन
छुपाता है अपना शरीर

हर रोज निकलता है काम पर
सूखी रोटी खा कर
हाथों में खुरपी
हाथ में करणी
या हाथ में रंग-रोगन का डिब्बा बुरूश
सारे दिन जुता रहता है
एक बैल की तरह

मैं देख-देख कर
उसके काम को
हैरान हूँ उसके श्रम पर
क्या यही है असली जीवन
संघर्ष से भरा
जाड़े की ठिठुरती रात में
वह दो रोटी खा, सो रहेगा
खोड़ी ही खाट पर
एक गहरी नींद ले लेगी
उसे अपने आगोश में

और हमें मुलायम, नर्म बिस्तर पर भी
नींद नहीं आती
पलक भी नहीं झपकती
पता नहीं उसका संघर्ष बड़ा है
या हमारा
अगले जन्म हमें भी दिहाड़ी मजदूर ही बनाना
जिससे गहरी नींद में तो सो सकें।


Image : The Sleeping Gypsy
mage Source : WikiArt
Artist : Henri Rousseau
Image in Public Domain

मनीषा जैन द्वारा भी