कभी कभी
- 1 June, 2022
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-on-kabhi-kabhi-by-prayag-shukla/
- 1 June, 2022
कभी कभी
कभी-कभी उलझा लेता है कोई काँटा।
कभी कोई तार, कभी चलते-चलते
कोई कील लेती उलझा!
उलझ कर रह जाता है कोई वस्त्र।
उलझा लेता है कभी-कभी
कोई सन्नाटा!
कभी कोई शोर, कोई तारा, पथहारा!
कभी-कभी कोई फूल।
नदी कूल।
उलझा लेती है कोई धारा।
कभी-कभी उलझा लेती है
किसी ठौर
को दृष्टि, सृष्टि बन,
और हम रह जाते हैं ठगे से खड़े!
जैसे जाना न हो कहीं और!
Image : Thorns and roses
Image Source : WikiArt
Artist : Ludwig Knaus
Image in Public Domain