क्या कहलवाना चाहते हो

क्या कहलवाना चाहते हो

तुम मुझे एक कप चाय पिलाके
मुझसे क्या कहलवाना चाहते हो
कुव्यवस्था के पक्षधर होकर
उसका गुनगान करूँ
प्राथमिक विद्यालय से लेकर
महाविद्यालय, विश्वविद्यालय तक
किताबें लिखूँ, यही न?
तुम मुझसे कहलवाना चाहते हो
तीन रंगों के अलावे और
कोई रंग होता ही नहीं, यही न?
तुम मुझसे क्या कहलवाना चाहते हो
कि समाजवाद लाने के लिए फूल,
हाथ, पंजा, राकेट-गिरगिट-रूखी
आदि ही निशान हो सकते हैं
और कहीं कुछ नहीं, यही न?
तुम मुझसे क्या कहलवाना चाहते हो
कि तुम्हारे देश में रिक्शा नहीं चलता
आदमी पर आदमी नहीं चढ़ता, यही न?
तुम मुझसे क्या कहलवाना चाहते हो
कि ब्लड बैंक के खून दान के हैं
लाचार आदमियों के नहीं, यही न?
तुम मुझसे क्या कहलवाना चाहते हो
कि चंबल घाटी का हर आदमी
डकैत और हैवान है, जबकि
विधानमंडल, संसद का आदमी
ईमानदार और इंसान है, यही न?


Image: Tea on the Porch
Image Source: WikiArt
Artist: Willard Metcalf
Image in Public Domain

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