मुकरियाँ
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-on-mukriyan-by-nagarjun/
- 1 June, 2022
मुकरियाँ
बातन की फुलझड़ियाँ छोड़े
बखत पड़े तो चट मुँह मोड़े
छन में शेर, छन ही में गीदड़
क्या सखि साजन? ना सखि, लीडर
मारै मौज, मानवैं खैर
अपन अपन से जिनका वैर
रिखी-मुनी का देय नजीर
क्या सखि प्रीतम? नहीं वजीर
चाहैं अमृत, चटावैं धूल
वादे गए जिन्हें सब भूल
कोई भी अब नाम न लेता
कौन, गँजेड़ी? ना सखि, नेता
कल तक चढ़ा चुकी है शान
अब रस्ते पर पड़ी अजान
लगा रही बस रह-रह ठेस
क्या सखि, सिल है? ना, काँग्रेस
घट-घट व्यापी गरिबनेवाज
सभी इकाई सए का अंदाज
होंठ न मुँह फिर भी हैं बोल
क्या सखि ईश्वर? ना, कंट्रोल!
Image : Two Chatting Women with Two Children
Image Source : WikiArt
Artist : Kathe Kollwitz
Image in Public Domain