हाड़ पुरखों के

हाड़ पुरखों के

पुरखों के गले हुए हाड़ चरमरा उठे
पुरखों के पाँव अब कब्र से बाहर निकल
आने को हैं आतुर
तुम हाड़ के चूरे से या
कब्र से बाहर लटकते पाँव का
डीएनए टेस्ट करवाओगे!

क्या हमारे पुरखे यहीं मर-खप गए या
जज्ब हो गए उनके हाड़ चूरे की शक्ल में!

पिता कभी-कभी कहानी-सा बताते
उनके दादा, पिता स्वर्ग रथ पे सवार होकर गए
और उनकी चिताओं की राख भी
हम बहा आए थे संगम में
और सब संगम के पानियों के संग
जमना में बही
या गंगा संग बहती चली
या सब सरस्वती सरीखी जज्ब हो गई
दोनों नदियों के भार से किसको पता!

नदियाँ तो समंदर में समा चुकीं कब की
पुरखे जन्म ले भी चुके होंगे अरब में, अफ़ग़ान में या अफ्रीका या
अमेरिका में न जाने कहाँ?

कब्र के किनारे-किनारे अनेक खरपतवार
हमेशा ही उग आते हैं
और लोग हटाते रहते हैं
रोज-रोज कब्र तर करने से
रूहों को सुकून मिलता है
लोगों को कहते सुना है।

हाड़ के चूरों को भी कीट चट कर
जाते होंगे देह से
ऐसे में कैसे करवाओगे डीएनए?
कि हमारी जड़ें थीं भारत में?
हाँ धरती पर थीं यह तो साबित
हो भी जाए पर
पुनर्जन्म!
इसका टेस्ट कौन करेगा??

हाँ इन सबका एक ही है मास्टर माइंड है
जो सबका डीएनए करवाता रहता है
सिवाय अपने
भले ही किसी और का हो माइंड
पर है बिका हुआ
बेईमानी नहीं है उसके खून में
अपने आकाओं का खूब फरमाइशें
करता है पूरी…

चलो उस दिमागी पैदल से ही
डीएनए करवाते हैं!!


Image : Portrait of an old man
Image Source : WikiArt
Artist : Fyodor Bronnikov
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