पलने लगी

पलने लगी

पलने लगी हैं दिल में कई ख्वाहिशें नई
नग़मे सुना रही हैं सुनो धड़कनें नई

चढ़ने लगा है भाव भी बाज़ारे-इश्क़ में
छूने को आसमान चलीं क़ीमतें नई

हमने लगा दी जान मिटाने में दूरियाँ
अब मत बनाओ यार मेरे सरहदें नई

जिस घर में क़द्र हो न बुज़ुर्गों की दोस्तों
उस घर से रूठ जाती हैं फिर रहमतें नई

रहने दो यार, बंद करो शोर मज़हबी
मत लाओ अपने मुल्क में अब आफ़तें नई

ख़ुशबू जहाँ में प्यार की फैलेगी, देखना
फूटेंगी एकता की यहाँ कोपलें नई

आहट है साफ़-साफ़ ये ‘परिमल’ चुनाव की
हर रोज़ मिल रही हैं हमें राहतें नई।


Image : Portrait of an Old Man
Image Source : WikiArt
Artist : Rembrandt
Image in Public Domain

समीर परिमल द्वारा भी