प्रगति की ओर
- 1 April, 2015
शेयर करे close
शेयर करे close
शेयर करे close
- 1 April, 2015
प्रगति की ओर
हम सुनहरे कल की ओर
बढ़ रहे हैं
तितलौकी तो थे ही
अब नीम चढ़ रहे हैं
अपने पड़ोसियों से हमने
बना रखे हैं मधुर संबंध
भले ही वे तोड़ते रहें
सारी सीमायें
सारे अनुबंध
हम अपने सिद्धांतों पर
हमेशा खरे उतरते हैं
उतरेंगे
दोस्ती के नाम पर
कुछ भी कर गुजरेंगे
ये हमारी कायरता नहीं
महानता का है प्रमाण
कि अपने जवानों की
जघन्य हत्याओं के बावजूद
हम शांति का चालीसा पढ़ रहे हैं
लोकतंत्र के प्रति हम
कितने हैं जागरूक और आस्थावान
इसके भी प्रमाण की फेहरिस्त
बहुत बड़ी है
निर्वाचन आयोग द्वारा
घोषित अयोग्य उम्मीदारों में
एक नेत्री भी आज मुख्यमंत्री की
कुर्सी पर आराम से पड़ी है
आंतरिक और वाह्य सुरक्षा में
हम कितने हैं मजबूत
इसका भी देख लें एक सुबूत–
कई दिनों से हम
दिल्ली में एक बंदर पकड़ रहे हैं,
यहाँ समस्याओं का समाधान
बिलकुल है आसान
क्योंकि हर जिम्मेदार व्यक्ति
के पास एक-एक जादुई छड़ी है
इसीलिए आम आदमी के सम्मुख
कुव्यवस्थाओं की
एक सुव्यवस्थित लड़ी है
आदर्श सुव्यवस्था का ही कमाल
कि हजारों लोग हर साल
बाढ़ में बहते हैं
प्यास लिये मरते हैं
पथरा जाती हैं
लाखों लोगों की आँखें
अन्न के अभाव में
क्योंकि हमारे खाद्यान्न
थोक के भाव में
गोदामों में सड़ रहे हैं और हम
प्रगति की ओर बढ़ रहे हैं।
Image : Pushkin at the top of the Ai Petri Mountain at sunrise
mage Source : WikiArt
Artist : Ivan Aivazovsky
Image in Public Domain