रगों में लहू
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-on-ragon-mein-lahu-by-manisha-jain/
- 1 April, 2015
रगों में लहू
पिता, आप उस दिन
देख रहे थे मेरी ओर
बुझती साँझ की तरह
मेरी आँखों में भर रही थी
तुम्हारी आँखों की सतरंगी रोशनी!
पिता, उस दिन जब तुम्हारे हाथ
उठ रहे थे मेरी तरफ कुछ कहने
शाख में उगती पत्तियों की तरह
दे रहे थे अटूट विश्वास
मेरी बाँहों को!
पिता, उस दिन तुम्हारे वो कदम
जो जा रहे थे मृत्यु की ओर
मेरे पैरों में भर रहे थे गीत
मेरे जीवन में आ रही थी सुबह!
पिता, मैं कहाँ भूल पाऊँगी
तुम्हारा देना
जो अदृश्य होकर दिया तुमने
बहता है आज भी वह
मेरी रगों में लहू बनकर
क्या मैं अपने बेटे को दे पाऊँगी
ये सब कुछ!
Image: Фаррух Бек. Старый-мулла.ок.1615 Виктория и Альберт
mage Source: Wikimedia Commons
Image in Public Domain