रखते हैं आकाश

रखते हैं आकाश

अचानक से कोई
रोक दे नदी का बहना
और असंगत हो जाए
विस्थापित नियमों से!

कभी भी इस भय के
अभिनय से नहीं डरते हैं वे…
चाँद से करते हुए संवाद
सूरज की किरणों को
ओढ़ निकलते हैं वे
नदियों से करते हैं कदमताल…

हर पत्ते की आयतें हैं
उनकी जरूरी प्रार्थना
पक्षियों के समझते हैं दु:ख
सहलाते हैं उनके घाव
लगाते हैं प्रेम का मरहम…

भय और कुछ नहीं
मस्तिष्क पर लिपटी हुई
एक झीनी सी चादर है
जिसे उतार फेंकते हैं
किसी भी वक़्त
क्योंकि वे अपने साथ
रखते हैं ढेर सारा आकाश…


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Image Source: WikiArt
Artist: Arkhip Kuindzhi
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