सपने में गाँधी जी

सपने में गाँधी जी

बस थोड़ी देर के लिए ही आँख लगी
और सपने में गाँधी जी आ गए
वह भीड़ के बीच थे, फिर भी दिखे
कुछ हैरान-परेशान
कभी दिल्ली, कभी मुंबई, तो कभी
भोपाल, कोट्टायम में दिखे गाँधी जी
शायद कुछ बोलना चाहते थे,
लेकिन उनके मुँह पर बाँध दिया था
किसी ने मास्क

150 साल वाले गाँधी जी,
कंबल में बैठे हैं और
कुछ लोग उनको
लाठी के सहारे टाँग कर,
पैदल लिए जा रहे हैं
शायद, उनको जाना है,
बलिया-छपरा-चंपारण या फिर
गोंडा-बहराइच की ओर
अभी वह थोड़ी दूर ही चले हैं कि,
उनको बीच सड़क पर मिल गया,
मुरैना का एक नौजवान
वह पहचान गया है गाँधी जी को,
लेकिन वह उठ नहीं सका,
उनके सम्मान में,
बस, शांत हो गया है ‘हे राम’ कहके!
लेकिन गाँधी जी,
अभी भी चले जा रहे हैं टँगे हुए,
शायद बढ़ रहे हैं मेरठ की ओर
कोई बस, कोई मोटर नहीं हैं वहाँ,
उनके पीछे-पीछे
चले जा रहे हैं लोग

गाँधी जी, अब गोरखपुर से
चौरीचौरा के रास्ते में
दिखाई दे रहे हैं अब
वहीं एक बच्चा
बीच सड़क में बैठा है
अपनी माँ का पैर पकड़ कर
अपने पैर के छाले
दिखा रहा है गाँधी जी को

कोई गर्भवती महिला पानी माँग रही है
कोई सुन नहीं रहा है उसकी बात
कोई कह रहा है,
बस थोड़ा और चलो
आने वाला है बाराबंकी!

गाँधी जी की साँस फूल रही है,
घबरा रहा है उनका जी
एक आदमी, अपनी पुरानी
मोपेड ले कर आता है
उनकी मदद में

गाँधी जी को कंधे से उतारकर,
मोपेड पर बैठा रहे हैं कुछ लोग

अपने जर्जर शरीर को
सँभाल नहीं सके गाँधी जी
वहीं गिर पड़े हैं गाँधी जी,
बा उठा रही हैं उनको,
लेकिन गाँधी जी, उठ नहीं रहे हैं!

उनके मुँह पर अभी भी मास्क बँधा है
कुछ बोल नहीं पा रहे हैं, गाँधी जी!


Image: Studio photograph of Mahatma Gandhi, London, 1931
Image Source: Wikimedia Commons
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