शत शत नमन

शत शत नमन

पुरखों ने गंगा की निर्मल धारा
को, पाटलिपुत्र में नमन करके
जो बीज वपन किया था
‘नई धारा’ बहाई थी
उस नई धारा को सपरिवार
तुमने आगत पीढ़ियों के लिए
कलम थमाकर साहित्य–
संस्कृति, करुणा, संवेदना
मानवता के त्राण निमित्
और इस नई धारा का पाट
लंबा-चौड़ा करते हुए
महाप्रयाण कर गयीं
देखते-देखते मुक्तकाम गयी
और भारतीय साहित्य-संस्कृति
को, अगजग में उड़ान भरकर
कविता-कहानी-दर्शन-इतिहास-
भूगोल आदि साहित्य
विधाओं को पहुँचाते-पहुँचाते
थककर सो गयी
किंतु सोने से पहिले
आशीषती हुई
उसकी धारा को कभी भी
नहीं सूखे, कभी नहीं उमके ठहरे
यह अजर-अमर वाणी
नई धारा के अक्षर हैं, हर्फ हैं
जिसका क्षय कभी नहीं होगा
लाओ चरण बढ़ाओ
अक्षत-चंदन-रोली
और अलता से
रंग-बिरंगे फूलों से
कोमल-सुकोमल चरण पर
समर्पित कर
शत-शत नमन करूँ!


Image Source : Personal collections of Pramath Raj Sinha and Family

बाबूलाल मधुकर द्वारा भी