शो केस

शो केस

शहर के बाहर
बनी है नई इमारत
गुलाबी संगमरमर के परकोटे से घिरी
उम्दा कारीगरी की मिसाल
ताकते हैं हाईवे से गुजरते लोग
ठिठक जाते हैं पल भर को वाहन
सराहना पुतलियों से झलकती है
होंठों से टपकती है
देख रही पंडुक
कई दिनों नजारा
सड़क के उस पार से लटके-लटके
गुलमोहर की फुनगी पर
पहले कभी ऐसी हलचल न थी
बियाबान खेत में
खंडहर हुआ करता था
और झाड़-झंखाड़ के बीच अकेला पेड़
कितनी ही बार
लटकाया था घोंसला जिसमें
पालपोस कर
क्षितिज की होड़ में
भेजी कितनी ही पंडुकें
बस वही पेड़ है जाना-पहचाना
शेष सब बदल चुका है

पर आज
तिनके चोंच में दबाए
जब भी थी उड़ान
उसी पेड़ पर नशेमन की चाह में
किसी पारदर्शी दीवार से टकरा
औंधे मुँह जा गिरी थी
टूट गए थे पंख
छूट गए थे तिनके
बेचारी चिड़िया
नहीं जानती
इनसान जादूगर बन चुका है
उसने कैद कर रखा है सबको
शीशे की दीवार में
घर-आँगन, नाते-रिश्ते
पेड़-पशु और सागर भी
जिंदगी शो केस बन चुकी है।


Image : Landscape with dry trees and tall buildings
mage Source : WikiArt
Artist : Aristarkh Lentulov
Image in Public Domain