विदा होने से पहले

विदा होने से पहले

अबकी जब हम विदा हो रहे थे,
उन शहरों से,
जिन्होंने बनाया था हमें कमासुत,
दिया था एक नया नाम ‘परदेशी’
वहाँ कोई था ही नहीं,
जो गले मिलता
या फिर दूर से ही हिला देता हाथ
कोई नहीं आया,
बस स्टैंड तक साथ
गली-मोहल्ला, खिड़की-दरवाजा
सब अजनबी हो गए यकबयक
जो जहाँ था, वहीं रुक गया था
लेकिन मैं कहाँ था?
आदि में था न अंत में
मंजिल पर था न अनंत में
बाहर, कोई हलचल नहीं थी
कान के भीतर, गूँज रही थीं
जो आवाजें
उनको लेकर दिशा भ्रम था,
शायद विपरीत दिशा से आ रही
थीं ध्वनि तरंगे,
दूर की चीजें, दिखाई नहीं दे रही
थीं साफ-साफ
शायद, सामूहिक रूप से कमजोर
हो चुकी थीं, मोहल्ले की नजर
विदा होने से पहले,
थोड़ा वक्त तो था
लेकिन पैरों में नहीं लगा आलता,
न माँग में भरा गया चटकार सेनुर
हमें अपने से ही जतन करना था,
अक्षत और दूब
अपने से ही भरना था खोइंछा,
सँभालना था अँचरा
खुद ही रोना और
खुद को ही चुप कराना था
और इसी तरह विदा होना था
कोई था ही नहीं,
जो कहता, अपना ख्याल रखना,
पहुँच के खबर देना!


Image : Jacob Coin de village
Image Source : WikiArt
Artist : Camille Pissarro
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