फाग सवैया

फाग सवैया

अरी होरी है आज तो होरी अहै, खुलि खेलौ सबै न लजाओ कोऊ
बढ़ो आवत नंद को लाल इतै, पिचकी भरि ताकि चलाओ कोऊ
मुख देखती क्यों चुपचाप खरी, अरी धाय अबीर उड़ाओ कोऊ
भरि झोरी गुलाल लिये हौ कहा, धँसि लाल के गाल लगाओ कोऊ।
कंचन की पिचकी कर लै, चहुँ दौरत बिज्जु-छटा-छबि छोरत
डारत ताकि नई अबलान पै, रंग के छींटे अनंग झकोरत
मूठ गुलाल की मूठ सी मारत, लाय अबीर चितै चित चोरत
केसर के रंग के संग में, बलिहारी सनेह के रंग में बोरत।
नीलम के सुचि खम्भ पै कै, मनि-मानिक-माल-प्रभा हिय हूलै
कै निसि के कमनीय कलेवर, सूरज के करै जोति अतूलै
‘प्यारे’ किधौं जमुना जल पै, अरबिंद के बृंद लिखे मन भूलै
स्याम सरीर पै सोहै गुलाल, कै किंसुक-माल तमाल पै फूलै।
या पिचकी भरि कै रंग में, केहुँ भाँति ते ‘प्यारे’ छिपावन दै
तू मत जाय कहै उन सों, तब को बदलो तो चुकावन दै
झोरिन में भरि दे री अबीर, सुगाल गुलाल लगावन दै
गावन दे दी बजावन दै, इतै नंद के लालहिं आवन दै।
ह्वै रहीं रंगन ते सरबोर, हिये पै न नेक सकाय रही है
जोबन के मद में मतवारी, चहूँ दिसि हूँ छबि छाय रही है
बैठि कबौं भजि आड़े ह्वैं रंग ते, आपुन अंग बचाय रही है
ग्वालन मैं धँसि कै बलिहारी, गोपाल पै मूकि चलाय रही है।
हौंस हमारे हू जी के कढ़ै, कबौं पूरे हमार्यौ मनोरथ-जाल हों
हौं हूँ बनैं बड़भागिनि ‘प्यारे’, सोहागिनि में हमहूँ कबौं लाल हों
द्वार हमारे हू नेकु दया करि, संग हमारे हू फाग को ख्याल हों
रावरे गाल गुलाल लगाय, हमूँ तो कबौं नंदलाल निहाल हों।

(‘श्रीराजराजेश्वरी-ग्रंथावली’ से)


Image: Northern India, Himachal Pradesh, Pahari Kingdom of Guler Krishna
Celebrates Holi 2018.104 Cleveland-Museum of Art
Image Source: Wikimedia Commons
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