फिर फागुन आया
- 1 February, 2015
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on tumblr
Share on linkedin
Share on whatsapp
https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-phir-phagun-aaya-by-ramdarash-mishra-nayi-dhara/
- 1 February, 2015
फिर फागुन आया
फिर फागुन आ गया
डह डह डहका पलाश
परदेशी अँखियन में
बन अँगार लाल लाल छा गया
खींच रहीं नंगी वन बांटें अंगुलियों से आसमान में
सन्नाटा रेखाएं, डूबीं दल-फूलों के चित्र ध्यान में
डालों के खंडहरों में फिर वही
बैरी पंछी आ के गा गया
हलकी-सी गरम-गरम गंध हवा की नस-नस तोड़ने लगी
कोमल साँसों से उर बर्फ-जमीं डालों को फोड़ने लगी
अमराई से लेकर गांव तक
खेतों का जिया महमहा गया
गांव-बहू के फागों में धरती की लहरें गमगमा रहीं
धुुंधों के पार कहीं जा के आँखों-आखों में समा रहीं
तुहिन-तमस चीर डाल-डाल में
हास का उजास झरझरा गया
हर हर, झर झर झर, फरर फरर रंग-भरी फटी चूनरी
फड़ फड़ गेहूँ में स्वर लोट रहे, दूर पिया बहुत दूर रही
लो फिर यह भी राही, बावरी
आँखों को मुड़के भरमा गया।
Image: Snow-melting
Image Source: WikiArt
Artist: Laszlo Mednyanszky
Image in Public Domain