फिर फागुन आया

फिर फागुन आया

फिर फागुन आ गया
डह डह डहका पलाश
परदेशी अँखियन में
बन अँगार लाल लाल छा गया

खींच रहीं नंगी वन बांटें अंगुलियों से आसमान में
सन्नाटा रेखाएं, डूबीं दल-फूलों के चित्र ध्यान में
डालों के खंडहरों में फिर वही
बैरी पंछी आ के गा गया

हलकी-सी गरम-गरम गंध हवा की नस-नस तोड़ने लगी
कोमल साँसों से उर बर्फ-जमीं डालों को फोड़ने लगी
अमराई से लेकर गांव तक
खेतों का जिया महमहा गया

गांव-बहू के फागों में धरती की लहरें गमगमा रहीं
धुुंधों के पार कहीं जा के आँखों-आखों में समा रहीं
तुहिन-तमस चीर डाल-डाल में
हास का उजास झरझरा गया

हर हर, झर झर झर, फरर फरर रंग-भरी फटी चूनरी
फड़ फड़ गेहूँ में स्वर लोट रहे, दूर पिया बहुत दूर रही
लो फिर यह भी राही, बावरी
आँखों को मुड़के भरमा गया।


Image: Snow-melting
Image Source: WikiArt
Artist: Laszlo Mednyanszky
Image in Public Domain

रामदरश मिश्र द्वारा भी