प्यार न बाँधा जाए!

प्यार न बाँधा जाए!

प्रसंग यह है कि सुभद्रा कुमारी स्मारक अनावरण के समय श्रीमती महादेवी वर्मा ने कहा–‘नदियों के विजय स्तंभ नहीं बनते…!’ यह विचार मन में घुलता रहा घुलता रहा और जब वह गीत बनकर निकला तो यों आया और 1949 की मेरी सबसे प्यारी रचना बन गया!

साथी प्यार न बाँधा जाए।
शशि को छूने उठे उदधि का ज्वार न बाँधा जाए।
शैल शिखर की अँगड़ाई-सी धार-उठी अलबेली
शूल-फूल कंकड़-पत्थर में, बढ़ती चली अकेली
वनश्री के शोभा-मंदिर की भाव भरी रंगरेली
रंजित किरणों के संग आतुर लहरों की अठखेली
सिंधु मिलन अभिसारवती का, पार न बाँधा जाए।

बिना साँस के मैंने जीवन, कभी न चलते देखा
बिना स्वाति के मैंने चातक, कभी न पलते देखा
बिना स्नेह के मैंने दीपक, कभी न जलते देखा
ज्योति जली तो शलभों का, बलिदान मचलते देखा
चातक, दीपक, शलभों का, उद्गार न बाँधा जाए।

बचपन में वह भोला-भाला, वय में तनिक रंगीला
चंचल हुआ दृगंचल में आ, सुधि शहज सजीला
यौवन में उद्दाम काम–सा, सतरंगी चटकीला
उमर चढ़े रस बढ़े निरंतर, अंतर में किरनीला
जन जन के मन में फैला, विस्तार न बाँधा जाए।
साथी! प्यार न बाँधा जाए।


Image Courtesy: LOKATMA Folk Art Boutique
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