राखी की चुनौती

राखी की चुनौती

बहिन आज फूली समाती न मन में
तड़ित् आज फूली समाती न घन में,
घटा है न फूली समाती गगन में
लता आज फूली समाती न वन में।

कहीं राखियाँ हैं, चमक है कहीं पर
कहीं बूँद है, पुष्प प्यारे खिले हैं,
ये आई है राखी, सुहाई है पूनो
बधाई उन्हें जिनको भाई मिले हैं।

मैं हूँ बहिन किंतु भाई नहीं है
है राखी सजी पर कलाई नहीं है,
है भादो, घटा किंतु छाई नहीं है
नहीं है खुशी, पर रुलाई नहीं है।

मेरा बन्धु माँ की पुकारों को सुनकर-
के तैयार हो जेलखाने गया है,
छीनी हुई माँ की स्वाधीनता को
वह जालिम के घर में से लाने गया है।

मुझे गर्व है किंतु राखी है सूनी
वह होता, खुशी तो क्या होती न दूनी?
हम मंगल मनावें, वह तपता है धूनी
है घायल हृदय, दर्द उठता है खूनी।

है आती मुझे याद चित्तौरगढ़ की
धधकती है दिल में वह जौहर की ज्वाला,
हैं माता-बहिन रो के उसको बुझातीं
कहो भाई तुमको भी है कुछ कसाला?

है, तो बढ़े हाथ, राखी पड़ी है
रेशम-सी कोमल नहीं वह बड़ी है,
अजी देखो लोहे की हथकड़ी है
इसी प्रण को लेकर बहिन यह खड़ी है।

आते हो भाई? पुनः पूछती हूँ–
कि माता के बंधन की है लाज तुमको?
–तो बंदी बनो, देखो बंधन है कैसा,
चुनौती यह राखी की है आज तुमको॥


Image : The Children of the Painter
Image Source : WikiArt
Artist : Gheorghe Tattarescu
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