सवैया

सवैया

हिय लेती लगाय सुधीरज को, करि देती बिना दुःख की छतिया
बिकसाती कली मन की मुकुली, रसती रसना रस की बतिया
तन पीरो परो कर देती हरो, जगती न बिताती सबै रतिया
हियरे को हरा हँसि देती अभी, सखि पाती जु पै हरि की पतिया।

कासों कहौं अपनी मैं दसा, मन ही मन में हौं सदाहिं अरुझत
‘प्यारे’ तिहारे निहारे बिना, अँखियाँनहुँ सो कछु नाहिन सूझत
आस निरास की झौंरनि में परि, चित्त हमारो सदा पिय जूझत
अंतरजामी दयाल कहाई कै, पीर हमारी कहा नहीं बूझत।

भरि जायगी आए बसंत समीर, सुगंधित कुंजन की गलियाँ
झुकि जाएगी फूल के बोझन ते, अरुनारी पलासन की डलियाँ
छबि जाएगी ‘प्यारे’ प्रसूनन पै, मकरंद-सनी भ्रमरावलियाँ
लटकैंगी रसाल की मंजरियाँ, चटकैंगी गुलाबन की कलियाँ ।

नीके कसी अंगिया रहै और हू, जाहिर जामे उरोज-उभार हो
तापर लाल प्रबाल मई, हियरा हरे हीलत हीरक-हार हो
लोनी लटैं लटकी रहैं लंक लों, ढंग नवीन ते अंग-सिंगार हो
जाल निवार हो, ‘प्यारे’ ते प्यार हो, तो ही बसंत में पूरी बहार हो।

अरी होरी है आज तो होरी अहै, खुलि खेलौ सबै न लजाओ कोऊ
बढ़ौ आवत नंद को लाल इतै, पिचकि भरि ताकि चलाओ कोऊ
मुख देखती क्यों चुपचाप खरी, अरी धाय अबीर उड़ाओ कोऊ
भरि झोली गुलाल लिए हो कहा, धँसी लाल के गुलाल लगाओ कोऊ।

ऐसे न देखे खिलाड़ी कहूँ, नहि नेकहुँ पाँव सुपीछे हटावैं
ज्यो ज्यों सु अंग पै रंग परै, हिय ‘प्यारे’ जू त्यों त्यों सुरंग बढ़ावैं
धाबैं सुकंठ लगावे दोऊ, मुख चूमे अबीर की झोरी मुड़ावैं
दोऊ दुहूँन के गालन में, बड़े चाव सों धय गुलाल लगावैं।


Image: Northern India, Himachal Pradesh, Pahari Kingdom of Guler Krishna Celebrates Holi 2018.104 Cleveland Museum of Art.tif
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