सच

सच

(एक)

सच कहना जितना मुश्किल था
सच सुनना उससे कहीं ज्यादा साबित हुआ
सच को समझना तो लगभग असंभव सा रहा
सबसे आसान रहा सच देखते
हुए उसे अनदेखा करना
सच जानते हुए उससे आँख चुराना
अपना एक सच बना कर
उसकी खोल में घुस जाना
और मान लेना कि सच बस हमें मालूम है।

(दो)

सच मगर छुपने को तैयार नहीं होता
झूठ के सतरंगे पर्दे ताने जाते हैं
भ्रम की दीवारें खड़ी की जाती हैं
मगर उसकी उपस्थिति महसूस होती रहती है
वह दस्तक देता रहता है
हमारी चेतना के दरवाज़े पर
नींद में भी हम बड़बड़ाते हैं
यह सच नहीं हो सकता।

(तीन)

एक बड़ा सच होता है
शोषण का, शासन का, अन्याय का
उसे छुपाने के लिए
कई छोटे-छोटे सच रचे जाते हैं
न्याय की कोशिश के
बराबरी की कामना के
राजा की उदारता के
प्रजा की नादानी के
हम छोटे सच पर करते रहते हैं बहस
बड़ा सच राह देखता है
कभी तो कोई उसको भी देखे।

(चार)

सत्ता का सच एक है, जनता का सच एक
सत्ता का सच बंदूक है, जनता का सच भूख
जनता का सच सत्ता के सच से डरता है
सत्ता का सच भी जनता के सच से डरता है
वह जमा करता है बंदूकें और बंदूकें
इधर भूख भी जमा होती जाती है
इसके बाद होता है युद्ध हमें मालूम है
युद्ध में क्या होता है
हम बस प्रतीक्षा में हैं युद्ध कब होता है।

(पाँच)

अंतिम सच तो बस मनुष्य है
और उसकी गरिमा
मगर इस सच के रास्ते में
खड़े हो जाते हैं कई बड़े झूठ।
एक झूठ ईश्वर का
कि वह दयालु और न्यायप्रिय है
और वह अंतिम न्याय करेगा
एक झूठ पैसे का
कि सबसे बड़ा ईश्वर वही है
और उसी से मिलती है खुशी
ईश्वर का भय और पैसे का मोह छूटे
तो बहुत सारे पाप कटें
बहुत सारी ज़ंजीरें टूटें
फिर मनुष्य मिले
अपने सच की गरिमा के साथ।

(छह)

यह सच है कि सच के
बहुत सारे पहलू होते हैं
लेकिन इतना उलझा हुआ भी
नहीं होता सच
जितना उसे बना दिया जाता है
वह तो निरीह, सीधा-सादा
अपनी राह चलने वाला होता है।
झूठ के बहुत सारे पाँव होते हैं
वह छेंकने की कोशिश करता है
सच का रास्ता।
कई बार बार
सच का रूप धर लेता है
खुद को बताता है
सच का ही एक पहलू
लेकिन झूठ भी एक दिन खुल जाता है
सच से भी एक दिन
आँख मिलाने की नौबत आती है।


Image : Portrait of a Man
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Artist : Ilya Repin
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