विरुद्ध
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-poem-viruddh-by-poet-bhavna-shekhar-nayi-dhara/
विरुद्ध
हृदय की भूमि में भी होती है
शक्ति गुरुत्वाकर्षण की,
अन्यथा बरसों हम
जुड़े ना रहते एक दूसरे से।
यह बात दीगर है
कि तुम बने रहे
कोई इमारत या फर्नीचर
निस्पंद असंग।
धरती में ही थी
पर अब संवेगों की गेंद
फेंकती हूँ जब भी
तुम्हारे मन की दीवार पर
क्यों वह वापस नहीं आती?
क्या ढह चुकी वह दीवार
जिसकी टेक लगाकर
तुमने अनसुना किया
मेरी वेदना को…
मैंने सुना था तन्मयता से
तुम्हारे मौन को,
मुझे लौटा दो वह गेंद!
न्यूटन के गति के तीसरे नियम का
तुम उल्लंघन नहीं कर सकते,
यह विरुद्ध है
विज्ञान और प्रकृति दोनों के।
Image : Cláudio nos Rochedos
Image Source : WikiArt
Artist : Antonio Carneiro
Image in Public Domain