यह भी एक जीद है

यह भी एक जीद है

आज, सोच रहा हूँ
आने वाले कल के बारे में
जबकि उम्र की दहलीज पार कर
सामने खड़ा है बुढ़ापा,
यह जानते हुए भी कि
अब इस सोचने का
कोई मतलब नहीं है

सारी जिंदगी लड़ता रहा
जीवन का युद्ध
रोजी-रोटी और कलम की लड़ाई
लड़ते हुए बिता दी सारी उम्र

असुरक्षित वर्तमान
अनिश्चितता के भँवर में
कभी डूबती, कभी उतराती
हिचकोले खाती
किनारे तक आ ही गई
जीवन की नाव
आने वाले कल से बेखौफ
चलता रहा समय की लहरों पर

खोया बहुत कुछ
पाया बहुत कम

गुणा-भाग, जोड़-घटाव की कला
नहीं आती थी मुझे
इसलिए हाथ आने वाले शून्य से
कभी नहीं घबराया
आतंकित नहीं हुआ मैं

अर्थ भाव लय की लड़ियों में
पिरोता रहा शब्द
लिखता रहा कविताएँ
गीत ग़ज़ल मुक्तक दोहे
जीवन के कटु तिक्त अनुभव
अंतहीन संत्रास को
उकेरता रहा अलग-अलग रूपों में

अपने लिए कुछ भी नहीं जुटा सका
सिवाय कविता की संपदा के
जिसका इस अर्थ-प्रधान दुनिया में
कोई अर्थ नहीं है

न यह दे सकती है रोटी
न कपड़ा, न मकान
बीमार पड़ने पर
नहीं दे सकती दवा
जानता था तब भी यह सच्चाई
फिर भी छोड़ा नहीं
शब्दों की दुनिया का साथ

सोचता रहा देश
दुनिया की तकलीफ के बारे में

दुनियादार दोस्त कहते थे
यह सोचना भी एक पागलपन है
रात में देर तक जागते हुए सोचना
खतरनाक है सेहत के लिए

फिर भी एक जिद है
जागते रहने और सोचने की

लिखते रहना लगातार
मनुष्यता विरोधी शक्तियों के खिलाफ
जब तक अंतिम बची है साँस।


Image : Portrait of Leo Tolstoy
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Artist : Nikolai Ge
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