यार जुलाहे

यार जुलाहे

यार जुलाहे
मुझे भी सिखा दे
चुनना और बुनना।
कैसे चुनता है तू
एक-एक धागा
कैसे बुनता है तू
सुंदर चदरिया।

तू मुझे ये भी सिखा
क्या बुनने से ज्यादा
अहम है चुनना।
मैं भी चाहता हूँ
बुनना एक कविता
जिसमें हो प्रेम की कढ़ाई
भावों की तुरपाई
संवेदनाओं की सीवन
और सुंदर सा जीवन।
पर मैं बुन नहीं पाता

चूँकि मैं चुन नहीं पाता
तेरे धागों की तरह
एक-एक शब्द।

जब भी चुनता हूँ
बिखर जाते हैं, फिसल जाते हैं
सारे शब्द, मन की फिसल पट्टी से।
यार जुलाहे, मुझे भी सिखा दे
मैं भी चाहता हूँ
जीवन की सीखों को चुनना
और उन्हें आखिरी वक्त तक
साँसों में बुनना।


Image : Weaver
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Artist : Vincent van Gogh
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