हम फिर मिलेंगे

हम फिर मिलेंगे

वह औरत बहुत बातूनी थी
मुझे उसकी बेसिरपैर की बातें सुनना
अच्छा लगता था
मुझे लगता था कि मैं पढ़ पा रहा हूँ
उसकी बातों के पीछे छिपा
उसका अधूरापन
उसकी दबी-दबी ख्वाहिशें
और उसका एक जरा-सा पागलपन

फिर उसे सुनते-सुनते
एक दिन मुझे लगा
उसकी जुबान से वह नहीं
मैं ही बोल रहा हूँ
मैं ही सुन रहा हूँ
और मैं ही उन बातों के
अर्थ बुन रहा हूँ

मैंने एक दिन उसे यह बात बताई
और उसके बाद हम दोनों चुप हो गए
फिर बहुत दिनों तक
कुछ नहीं कहने के बाद
एक दिन उसने कहा कि दुनिया
पहले से ज्यादा खूबसूरत हो गई है

कुछ भी कहने के पहले मैं
सोचता रहा उस घने पेड़ के बारे में
जिसके नीचे बैठकर एक बार हमने
देर शाम तक चिड़ियों का
शोर सुना था
बिना कुछ कहे-सुने

मुझे याद है वह बसंत का मौसम था
मैंने उससे इतना ही कहा–
अगले बसंत में हम फिर मिलेंगे
चिड़ियों वाले उसी घने पेड़ के नीचे!


Image : Landscape with Couple
Image Source : WikiArt
Artist : Henri Martin
Image in Public Domain

ध्रुव गुप्त द्वारा भी