कूड़े पर कुछ बीनते बच्चे

कूड़े पर कुछ बीनते बच्चे

उन्हें नहीं मालूम
बचपन का प्यार
न ही माँ की लोरी।
वे नहीं जानते
फूल कैसे खिलते हैं?
वे फूलों के रंग के
बारे में नहीं सोचते
न तितली के विषय
न शहद के बारे में

वे दिनभर कूड़े में कुछ ढूँढ़ते रहते हैं
और रात में कहीं भी सो जाते हैं

उन्हें नहीं मालूम
कब उगा लाल सूरज
कब उतरा नदी में नारंगी सूरज
उन्हें नहीं मालूम
भोर में चिड़िया का मधुर गान
न ही स्कूल की तख्ती

उन्हें पता है बस
दो रोटी के लिए
दो पैसे कमाना
नहीं तो पड़ेगा भूखे सोना
वे बचपन में ही हो रहे बूढ़े

सचमुच उन्हें नहीं पता
रात में टिमटिमाते तारे
जो हैं सब उन्हीं के वास्ते
उन्हें नहीं पता
चंदा है हमारा मामा
नहीं है पहचान रिश्तों की

वे बस जानते हैं
रोटी और पानी
जिस दिन मिल जाए रोटी
उस दिन मन जाए दिवाली
नहीं तो है फाँकों की होली

महरुम हैं ये अनगिन चीजों से
ये कूड़े पर खिलते पुष्प हैं
होंठों पर है मुस्कान इनके
आँखों में हैं भरे सपने
किसी के तो होंगे ये अपने
कूड़े पर कुछ बीनते बच्चे!


Image :Two beggars
Image Source : WikiArt
Artist :Charles Victor Thirion
Image in Public Domain

मनीषा जैन द्वारा भी