यादों की गठरी में

यादों की गठरी में

हिंदी में दांपत्य जीवन को लेकर विपुल लेखन हुआ है; साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में। आलोच्य पुस्तक में भी एक पत्नी द्वारा पति के निधन के बाद उनके  जीवन रस को स्मृतियों में जीने की रचनात्मक कोशिश है। जग चाहे लाख कहे ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेहिं’ परंतु मनुष्य जब तक जीवित रहता है अतीत की स्मृतियों से स्वयं को बाहर निकालने की चाहे वह जितने जतन कर ले कामयाब नहीं हो पाता और अगर यादें किसी प्रियजन के साथ की हो तो बात फिर ‘क्या भूलूँ, क्या याद करूँ’ जैसी हो जाती है। उसमें डूबने-उतरने जैसी उहापोह की स्थिति जीवनपर्यंत बनी रहती है। यही स्थिति गाँव संवरूपुर, जिला बलिया, उत्तर प्रदेश में जन्मी आशारानी लाल की भी है। चूँकि लेखिका विद्या भवन महिला महाविद्यालय में हिंदी की अध्यापिका रह चुकी हैं। कारणवश उनकी भावनाएँ हिंदी के सशक्त रचनाकारों की रचनाओं को आत्मसात करती मालूम पड़ती हैं।

डॉक्टर लाल ने इसमें स्वयं की अनुभूतियाँ एवं संवेदना हृदय के उद्गार तथा अपने पति डॉ. लाल के साथ व्यतीत 61 वर्षों के दांपत्य जीवन की अत्यंत हृदयस्पर्शी, मार्मिक, कुछ खट्टी, कुछ मीठी तथा बहुत सारी आत्मीय प्रसंगों को पूरी निष्ठा और लगन के साथ ठीक वैसे ही प्रस्तुत किया है जैसे ‘हरी घास पर क्षणभर’ में अज्ञेय ने कहा है, ‘मौन भी अभिव्यंजना है, जितना तुम्हारा सत्य है उतना ही कहो’! इन यादों की गठरी की विशेषता यही है कि लेखिका ने जैसे कन मात्र भी जमाने की परवाह न करके पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ अपने सुख-दुख के पलों को बड़ी बेबाकीपन और यथार्थ के साथ चित्रित किया है। वह सहृदय पाठक के लिए बहुत ही रमणीय और प्रशंसनीय बात है। कहीं-कहीं कुछ प्रसंग इतिवृतात्मकता लिए अनावश्यक प्रतीत होते हैं, जिनसे बचने पर रचना का आकर्षण और शिल्प दोनों और निखर उठेगा। परंतु जैसा कि प्रसंग ही आत्मीयजन के साथ का है, तो थोड़ा विस्तार भी स्वाभाविक है।

डॉ. लाल से जो मधुर स्मृतियाँ लेखिका को मिली, वही उनके जीने का संबल बनी हैं। इसी प्यार और भावनात्मक संरक्षण के बल पर लेखिका ने पूरे 14 वर्षों तक डॉ. लाल की सेवा सुश्रुषा पूरी तन्मयता के साथ किया है। कहते हैं, जो होता है अच्छे के लिए होता है। ऐसा लेखिका का भी मानना है, कि बीमारी के बहाने ही सही उन्हें अपने पति के करीब रहने का मौका तो मिला, उनकी सेवा सुश्रुषा कर उनको आत्मसंतोष की प्राप्ति तो हुई। जमाना भले ही उन्हें विधवा कहे मगर वह स्वयं को सही मायने में सधवा मानती हैं, क्योंकि स्वयं सुहागन परलोक जाकर भी पति को कष्ट में देख उनकी आत्मा मुक्ति कहाँ पाती। दो पुत्र, बहू, पोते-पोतियों से भरे परिवार में भी वह डॉ. लाल के बिना स्वयं को नागार्जुन के ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ की तरह ही पाती हैं, जिसकी वो लाल की यादों की पाती बनाएँगी, अपने हृदय के उदगारों को वह मुक्त कंठ से उतारेंगी और डॉ. लाल को समर्पित करेंगी।

नायिका के विरह को तो हिंदी साहित्य में अनेकानेक विद्वानों ने शब्दबद्ध करने की चेष्टा की है और जिसे अनमोल निधि के रूप में संग्रहीत भी किया जाता रहा है, परंतु लेखिका ने स्वयं के विरह को ठीक उसी तरह प्रस्तुत किया है जैसे अपनी आत्मकथा में स्वयं को बच्चन जी ने। डॉ. लाल के साथ लेखिका ने विवाह से लेकर अंतिम शव यात्रा तक के सभी मार्मिक प्रसंगों को जीवंतता के साथ मुखरित किया है। डॉ. लाल द्वारा बिंदु संबोधन लेखिका को अत्यंत प्रिय था। प्रथम दर्शन में ही डॉ. लाल द्वारा मिलन की आतुरता बस घर वाले उन्हें निर्लज्ज की उपाधि देते हैं, जिससे जीवनपर्यंत लेखिका भी उन्हें कहकर चिढ़ाती है। जैसा कि पहले के संयुक्त परिवारों में अक्सर देखने-सुनने को मिलता था कि परिवार बहुत ही बड़ा हुआ करता था और उसकी पूरी जिम्मेदारी बड़े बेटे को ही निभानी होती थी और जिम्मेदारी के सबसे निचले पायदान पर पत्नी रहती थी। उसे अगर कोई सर्व उपेक्षिता भी कहे तो कोई आश्चर्य नहीं। यही स्थिति लेखिका की भी थी। उन्हें डॉ. लाल से कभी अपने हिस्से का समय नहीं मिल पाया। परिवार, कॉलेज, समाज में इतने व्यस्त रहे कि उनके पास लेखिका के मनोवेगों को पढ़ने का अभाव-सा रहा। इसलिए लेखिका उन्हें हमेशा चिढ़ाती थी, कि गणित के ज्ञाता अपने विषय की तरह उदासीन, शुष्क और रसहीन होते हैं। जवाब में डॉ. लाल हिंदी-तिंदी कहकर लेखिका को चिढ़ाते। यानी समय जब भी मिलता शिकवे-शिकायत और नोकझोंक के बहाने रिश्ता हमेशा तरोताजा ही रहता।

डॉ. लाल और लेखिका का जो संबंध है वह प्यार की अपरिहार्यता उसकी बहुरंगी छवियाँ, सुख-दुख और संघर्ष को प्रेम में तब्दील करता अपनत्व के एहसास से पूर्ण एक सफल दंपति का वास्तविक प्रेम है, जो अपनी पूरी गरिमा और मोहकता के साथ यहाँ अपने प्रेम की पराकाष्ठा तक विद्यमान है। लेखिका ने अपने जीवन के उन सभी प्रसंगों को बड़ी सहजता, सरलता और गँवाईपन की छौंक के साथ पाठकों  तक खुले मन से लाने का सुंदर और सफल प्रयास किया है। जिन-जिन प्रसंगों ने उनके अंतर्मन को छुआ है, कही-अनकही बातों का बवंडर जो उनके हृदय के उद्गार के रूप में हिंदी साहित्य तक आया है, वह निश्चय ही पाठकों को ग्राह्य होगा और साहित्य जगत में इसकी प्रशंसा भी होगी।


Image : Landscape with Couple
Image Source : WikiArt
Artist : Henri Martin
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रजनी प्रभा द्वारा भी