वर्तमान विसंगतियों का रेखांकन

वर्तमान विसंगतियों का रेखांकन

शोभा जैन के द्वारा रचे गए ये निबंध जिनमें अनेक आलेख भी शामिल हैं इस तथ्य की गवाही देते हैं कि किसी पहले राहगीर ने बड़े विश्वास और साहस के साथ इस पथ पर अपने पाँव आगे बढ़ाए हैं। ‘समकाल के नेपथ्य’ में जो निबंध और आलेख सम्मिलित हैं वे इस तथ्य के साक्षी हैं कि एक सजग रचनाकार ने अपने युग के स्पंदनों को सुना है और फिर इन स्पंदनों को उन्होंने शब्दरूप में परिणत कर संप्रेषणीय ढंग से लोक के समक्ष प्रस्तुत कर दिया है। 

प्रख्यात चिंतक, व्यंग्यकार और समीक्षक प्रो. बी.एल. आच्छा ने बहुत सच लिखा है कि हमें सिद्धि तभी मिलती है जब अतीत का नवनीत मार्गदर्शी हो तथा विचारधाराएँ जीवनप्रवाह की सततता को नवोन्मेषी बनाती हों और डॉ. शोभा जैन के इस वैचारिक अनुष्ठान में यही जीवनदृष्टि है, जो न तो अतीत-राग और न विचारधाराओं के संकरीले प्रवाह से बँधी है बल्कि वे समकाल के नेपथ्य में मुखर प्रतिध्वनियों को हाशिये से निकालकर मुखपृष्ठ पर लाती हैं। उनका यह कहना भी अपने स्थान पर बड़ा सटीक है कि इस संकलन के निबंधों का खुला आकाश हमारे सोच का अनेकांत है। 

डॉ. शोभा जैन ने अपनी कृति के संबंध में विस्तार से अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए अपने दृष्टि को प्रस्तुत किया है। अपने लेखन प्रक्रिया के संबंध में उन्होंने लिखा है कि सब कुछ अचानक नहीं होता। शब्दों के नेपथ्य में हमारे समकाल की सुगबुगाहट बनी रहती है। हर समकाल का एक नेपथ्य होता है। उसके बाहर आने की छटपटाहट ही खाली क़ाग़ज़ों का जीवन भर देती है। वे यह भी मानती हैं कि प्रकृति ने उनका चयन मूलतः गद्य के लिए ही किया है। इस संग्रह में कुल 55 आलेख और निबंध सम्मिलित हैं जिनके बारे में बड़े विस्तार से चर्चा की जा सकती है किंतु इन निबंधों के विषय बड़े मौलिक हैं तथा लेखिका की दृष्टिसंपन्नता और अपने युग के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की ओर इंगित करते हैं। उनकी दृष्टि का विस्तार अपरिमित है। इन निबंधों और आलेखों के विषय विविध हैं और वे अपने समय का तो प्रतिनिधित्व करते ही हैं अपने अतीत के संबंध में भी उसकी उज्ज्वलता और प्रखरता को हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं। उनकी दृष्टि की व्यापकता का अनुमान इसी से किया जा सकता है कि पहले दो निबंध ही मनुष्यता का उद्घोष करते हैं और वे मनुष्यता के जीवन मूल्यों को परिभाषित करते हुए व्यक्ति के विश्व रूप में रूपांतरण की उद्घोषणा करते हैं। 

साहित्यिक विषयों पर उनके निबंध गूढ़ रूप में हैं तथा समकालीनता, समसामयिकता और आधुनिकता को लेकर उनमें विचारपरक सामग्री समाविष्ट की गई है। उन्होंने निराला और मुक्तिबोध की काव्य सामर्थ्य पर विचार किया है तथा यह सच लिखा है कि साहित्य को किसी साधना या तप की तरह जीने वाले संत साहित्यकार, साहित्य के प्रति वास्तविक आस्था और उसके आचरण के संस्कार को गति दें। शायद तभी कह सकेंगे कि साहित्य में कभी अवकाश नहीं होता। 

डॉ. रामविलास शर्मा न केवल प्रख्यात आलोचक थे बल्कि अप्रतिम भाषाशास्त्री, संस्कृतिविद और कलाविद भी थे। उन्हें लेकर भी शोभा ने अच्छा विमर्श किया है। उनका यह कथन अपने स्थान पर बिल्कुल उचित है कि उन्होंने हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य की अंतर्वस्तु पर ज़ोर दिया तथा एक भाषा वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने हिंदी भाषा के विविध पक्षों को उभारते हुए उसके अध्ययन के वृत्त को विस्तारित किया। वे स्वतंत्र, आत्मनिर्भर भारत में हिंदी के भविष्य और कोरोना त्रासदी को लेकर भी अपनी चिंताएँ जहाँ एक ओर व्यक्त करती हैं वहीं दूसरी ओर वे इस बात के लिए भी सशंकित हैं कि मनुष्य का अंतिम युद्ध प्रकृति से तो नहीं हो रहा है। 

एक प्रखर समाचार पत्र ‘अग्निधर्मा’ की संपादक होने के कारण उनकी सूक्ष्म दृष्टि अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ती है। वे अमृता प्रीतम से भी प्रभावित हैं और विभाजन की उन चुनौतियों को लेकर भी चिंतित हैं जो आज भी अशेष नहीं हुई हैं। हमारे आज के समय में हो रहे अपराधों को लेकर भी उन्होंने अपने विचार रखे हैं। आचार्य रजनीश की दृष्टि में क्या है प्रेम इसे लेकर भी उनका एक निबंध है। भाषा, धर्म, कॉरपोरेट जगत, अँग्रेज़ी की अपरिहार्यता और महामारी से उपजी विसंगतियों को लेकर भी उनकी चिंताएँ मुखर हुई हैं।  

समग्र रूप में डॉ. शोभा जैन के इन निबंधों में हमारे आज के युग की विसंगतियों को तो रेखांकित किया ही गया है अपनी ओर से समाधान भी सुझाए गए हैं। वे एक आशावादी सर्जक हैं इसलिए उनके लेखन में आशावाद के स्वरों का गुंजन निरंतर सुनाई देता है। इन निबंधों और आलेखों से गुज़रते हुए मुझे यह आश्वस्ति मिली है कि आज की नई पीढ़ी का सूरज भी अपने समूचे प्रभामंडल को लिए उदित हुआ है और शोभा जैसे रचनाकारों ने इस सूरज की रश्मियों को और रेशमी, और प्रखर तथा और दीप्तिमय स्वरूप देकर हमारे सर्जनात्मक जगत को एक उज्ज्वल और आशा से भरपूर, भोर की सौगात सौंपी है।