सावधान-सावधान

सावधान-सावधान

मैंने फिर खींच दिए हैं
तुम्हारे चेहरे पर कुछ गहरे निशान
तुम इन्हें जल प्रलय कहो
या केदारनाथ आपदा!
कुछ निशान तुम्हारे चेहरे पर
मैंने पहले भी छोड़े थे
तुम भूल गए शायद, याद दिला दूँ!
कुछ बरस पहले महाराष्ट्र के लातूर में
गुजरात के भुज और मोरवी में
और कुछ अरसा पहले उत्तर काशी में भी!

मुझ से तुम जब भी खेलोगे
यूँ ही पछताओगे
कभी नदी की लहरों
कभी मलवे के नीचे
अपनो को खोजते
अपने आपको पाओगे!
मुझे ठीक से जान लो
लापरवाह मत बनो
अच्छे से पहचान लो
मैं प्रकृति हूँ और पर्यावरण मेरी आत्मा,
धरा, आकाश, वायु, मानो तो परमात्मा
विकास के नाम पर उल्टे
खूँटे मत गाड़ो
मेरा संतुलन मत बिगाड़ो!

भूल गए दिल्ली की वो पीली आँधी
और उत्तर भारत के आसमान में उड़ता गर्द
तुम्हें क्यों नहीं दिखती कराहती हुई नदियाँ
गंगा-यमुना और झेलम का दर्द!

मैंने तुम्हें अपनी मिट्टी, पानी, हवा
और इन्हीं पौधों-नदियों से पोसा है
मैं समझा रही हूँ शायद तुम सुधरोगे
मुझे अब भी ये भरोसा है!
मैं तुम्हारी माँ हूँ, मुझे डायन मत बनाओ
तुम्हारे साथ मैं कई बार रोई हूँ
अब और मत रुलाओ
फिर कहती हूँ
मुझे बचाकर खुद को बचा लो
पढ़े-लिखे और सभ्य कहलाते हो
तो कुछ सुधरो और खुद को सँभालो!
वर्ना…/जब भी तुम जंगलों को काटोगे
पहाड़ों को तोड़ोगे
बाँध-पुल और सड़कों के नाम पर
अंधी दौड़ दौड़ोगे
मैं फिर नोचूँगी तुम्हारा चेहरा
और फिर छोड़ूँगी ऐसे ही निशान!
सावधान! सावधान!


Image : Sparrow and Scarecrow
Image Source : WikiArt
Artist : Ohara Koson
Image in Public Domain